निरर्थक वह दृढ विश्वास जिस पर
कुछ भी अमल न हो , निरर्थक है ।
वह आस जिस पर
कोई भी विश्वास न हो , निरर्थक है ।
वह कर्म जिस में
किसी के भले की बात न हो ,निरर्थक है ।
वह मधुर वाणी जिस में
कोई भाव न हो,निरर्थक है।
उस प्राणी से प्रेम, जिस के पास
देने को कुछ भी न हो ,निरर्थक है ।
वह सच्चा सदाचार जिस पर
लोगो की पवित्रता न हो , निरर्थक है ।
प्राणी का प्राणी से सदभाव न हो जिसमे
वह जीवन का हर क्षण, निरर्थक है ।
शादी का वो बंधन जिसमे
दो आत्माओं का मिलन न हो , निरर्थक है...
''राजश्री भाटी''